टैक न्यूज. ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के एक कानून छात्र ने अपनी परीक्षा में एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के उपयोग को लेकर मिली असफलता के बाद विश्वविद्यालय के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया है। कौस्तुभ शक्करवार, जो इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी और टेक्नोलॉजी लॉज़ में मास्टर ऑफ लॉज़ (एलएलएम) कर रहे हैं, का आरोप है कि विश्वविद्यालय ने अकादमिक कार्यों में एआई के इस्तेमाल के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं दिए हैं। जैसे-जैसे शिक्षा में एआई का प्रयोग बढ़ रहा है, यह मामला विश्वविद्यालय परीक्षाओं में तकनीकी उपयोग के संबंध में महत्वपूर्ण कानूनी नजीरें तय कर सकता है। मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में होगी।
एआई के प्रयोग से असफलता का आरोप
कौस्तुभ शक्करवार का यह कानूनी संघर्ष 18 मई को “वैश्विक दुनिया में कानून और न्याय” नामक कोर्स की परीक्षा में उत्तर प्रस्तुत करने से शुरू हुआ। विश्वविद्यालय की अनुचित साधन समिति ने रिपोर्ट दी कि उनके 88% उत्तर एआई जनित थे। इसके बाद, 25 जून को समिति ने उन्हें परीक्षा में असफल घोषित कर दिया। इस फैसले को परीक्षा नियंत्रक ने भी समर्थन दिया।
अदालत में दायर की गई याचिका
इस फैसले से निराश होकर शक्करवार ने अदालत का सहारा लिया। उन्होंने तर्क दिया कि विश्वविद्यालय ने एआई के उपयोग को लेकर कोई स्पष्ट नियम निर्धारित नहीं किए। उनके वकील प्रभनीर स्वानी द्वारा दायर याचिका में इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है कि एआई का उपयोग करना नकल नहीं माना जा सकता। विश्वविद्यालय के दावों को चुनौती देते हुए शक्करवार ने कहा कि उनके उत्तर मौलिक थे और उनकी अपनी समझ से लिखे गए थे।
एआई को सहायक उपकरण मानने की अपील
शक्करवार चाहते हैं कि अदालत आदेश दे कि भले ही किसी कार्य में एआई उपकरणों का उपयोग किया गया हो, फिर भी उस कार्य का श्रेय मानव लेखक को ही दिया जाए। उनका तर्क है कि एआई को एक सहायक उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि मानव रचनात्मकता के विकल्प के रूप में। उन्होंने भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 2(डी)(vi) का हवाला दिया, जिसमें यह प्रावधान है कि भले ही किसी कार्य के निर्माण में एआई का योगदान हो, मानव उपयोगकर्ता को ही उस कार्य का लेखक माना जाएगा।