नई दिल्ली: कश्मीर में मुसलमानों के धार्मिक प्रमुख मीरवाइज उमर फारूक ने संसदीय समिति के समक्ष वक्फ (संशोधन) विधेयक का विरोध किया, वहीं कई भाजपा सदस्यों ने संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा बनने के उनके फैसले से खुशी जताई, क्योंकि हुर्रियत नेता घाटी में अलगाववादी राजनीति से जुड़े रहे हैं। स्तावित कानून की जांच कर रही संसद की संयुक्त समिति के सदस्य भाजपा सांसद संजय जायसवाल ने कहा, “सबसे अच्छी बात यह थी कि उन्होंने अपनी बात जोरदार तरीके से रखी और विधेयक के विभिन्न खंडों पर अपनी आपत्तियां व्यक्त करने के अपने संवैधानिक अधिकार का हवाला दिया।”
मुस्लिम मौलवियों का प्रतिनिधिमंडल
उन्होंने दावा किया कि विपक्षी सदस्यों ने जानबूझकर ऐसा “प्रकरण” बनाया, ताकि फारूक के नेतृत्व में मुस्लिम मौलवियों का प्रतिनिधिमंडल समिति के समक्ष अपने विचार व्यक्त न कर सके। हालांकि फारूक भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल की अगुवाई वाली समिति के समक्ष क्षेत्र के मुस्लिम संगठनों के संगठन मुत्तहिदा मजलिस-ए-उलेमा के संरक्षक की हैसियत से उपस्थित हुए, लेकिन वह हुर्रियत के उदारवादी धड़े के नेता भी हैं, जो एक अलगाववादी समूह है, जो केंद्र सरकार की कार्रवाई के बाद लगभग निष्क्रिय हो गया है।
समितियों को मिनी संसद माना जाता है
कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने इस बात को महत्वपूर्ण माना कि उन्होंने संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए घाटी से बाहर कदम रखा। समिति के सदस्य भाजपा सांसद राधा मोहन दास अग्रवाल ने कहा, “यह अच्छी बात है कि वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बने।” हालांकि, जायसवाल ने इस बात पर जोर दिया कि संसद के समक्ष पेश होने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए “अलगाववादी” जैसे शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। संसदीय समितियों को मिनी संसद माना जाता है।
धार्मिक मामलों की स्वतंत्रता करता प्रदान
समिति के समक्ष अपने लिखित प्रस्तुतिकरण में मीरवाइज ने वक्फ अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों की आलोचना करते हुए इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ का उल्लंघन बताया, जिसे उन्होंने कहा कि “भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25” के तहत संरक्षित किया गया है। सूत्रों ने बताया कि उन्होंने मसौदा कानून के खिलाफ तर्क देने के लिए अनुच्छेद 26 का भी हवाला दिया, जो धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
सभी 10 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और डीएमके सहित अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों के लगातार विरोध के कारण समिति की कार्यवाही में देरी हुई, क्योंकि वे चाहते थे कि 27 जनवरी को विधेयक के खंड-दर-खंड चर्चा के लिए सदस्यों की अगली बैठक स्थगित कर दी जाए। वे मामले का अध्ययन करने तथा देश भर के हितधारकों की प्रस्तुतियों पर विचार करने के लिए अधिक समय चाहते थे। हालांकि पाल ने कहा कि उन्हें अपने विचार रखने के लिए पर्याप्त समय दिए जाने के बावजूद वे जानबूझकर बैठक को विफल करने की कोशिश कर रहे थे। बाद में सभी 10 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया, जिसके बाद कार्यवाही शुरू हुई।