बिजनेस न्यूज. 2008 के आर्थिक मंदी के समय, जब लोग अपनी नौकरियों को लेकर चिंतित थे, एडम डी’एंजेलो ने फेसबुक के सीटीओ (मुख्य तकनीकी अधिकारी) का पद छोड़ दिया। फेसबुक के लुभावने एल्गोरिदम के पीछे उनका बड़ा हाथ था। काम के दौरान उन्होंने यह जाना कि लोग सवालों के जवाब देने के लिए उत्सुक रहते हैं।
सवालों की ताकत को समझा
फेसबुक के “व्हाट्स ऑन योर माइंड?” जैसे प्रॉम्प्ट की सफलता से एडम को यह समझ आया कि सवाल पूछने की प्रक्रिया बेहद प्रभावशाली है। इसके पीछे एक मनोवैज्ञानिक कारण है जिसे “ज़ेगर्निक प्रभाव” कहा जाता है। यह प्रभाव बताता है कि अनसुलझे सवाल या अधूरी बातें हमारे दिमाग को जवाब ढूंढने के लिए मजबूर करती हैं। यही कारण है कि हम सीरीज़ बिंज करते हैं, सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करते रहते हैं, और रिश्तों में समाधान खोजने की कोशिश करते हैं।
क्वोरा की शुरुआत
इस प्रभाव को समझते हुए एडम ने 2009 में क्वोरा नामक प्लेटफॉर्म लॉन्च किया। यह एक ऐसा मंच था जहां लोग सवाल पूछ सकते थे और जवाब दे सकते थे। धीरे-धीरे, यह मंच लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बन गया।
क्वोरा की सफलता
आज, क्वोरा के करीब 30 करोड़ मासिक उपयोगकर्ता हैं, जो औसतन हर महीने 4.5 घंटे इस पर बिताते हैं। जब बाकी कंपनियां सोशल मीडिया पर ध्यान दे रही थीं, तब एडम ने इंसानी जिज्ञासा को व्यवस्थित कर इसे अपनी ताकत बना लिया और एक 6.3 अरब डॉलर की कंपनी खड़ी कर दी।
शुरुआती प्रतिभा
एडम डी’एंजेलो की प्रतिभा बचपन से ही झलकती थी। 15 साल की उम्र में उन्होंने एक ऐसा म्यूजिक प्लेयर बनाया जो इतना लोकप्रिय हुआ कि माइक्रोसॉफ्ट ने उसे खरीदने का ऑफर दिया।